कुछ व्यंग्य पर बिल्कुल सच
कुछ व्यंग्य पर बिल्कुल सच
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बाप के कपड़े उतर गए,
बेटी को कपड़े पहनाने में।
बेटी के कपड़े उतर गए,
फॉलोअर्स को बढ़ाने में।।
बाप बेचारा थक गया,
रोटी दाल कमाने में।
बेटा अभी थका नही,
मस्ती मौज मनाने में।।
बाप गर्मी में जलता है,
मां चूल्हे में जलती है।
तब कही मुश्किल से
घर की रोटी चलती है।।
बाप तन ना ढक पाया,
बेचारा मर गया सर्दी में।
बच्चे ए सी में बैठे हैं,
मां बाप मर गए गर्मी में।।
ज्यों ज्यों फैशन बढ़ता गया,
तन का कपड़ा घटता गया।
ज्यों ज्यों महंगाई बढ़ती गई,
होटलों में भीड़ बढ़ती गई।।
ज्यों ज्यों चुनाव आते गए,
नेता लोग घरों में आते गए।
नए नए झूठे वादे करते गए,
पर पिछले वादे भूलते गए।।
ज्यों ज्यों पेट्रोल के दाम बढ़ते गए,
त्यो त्यो गाड़ियों में वृद्धि होती गई।
चलाने वाले कभी भी कम ना हुए,
शोर मचाने वाली की वृद्धि होती गई।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम