कुछ लोग बस, यूॅं ही लिख जाते हैं !
कुछ लोग बस, यूॅं ही लिख जाते हैं !
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कुछ लोग बस, यूॅं ही लिख जाते हैं !
समझते वही हैं, खुद ही पढ़ जाते हैं !
छुपे भाव उनकी रचनाओं के….
कोई समझ नहीं पाते हैं !
गर समझना भी चाहें तो….
और ज़्यादा ही उलझ जाते हैं !
कुछ लोग बस, यूॅं ही लिख जाते हैं !!
रचना लिखें ऐसी जो भावपूर्ण हों !
व्याकरण की दृष्टि से हर शब्द शुद्ध हों !
पाठक जिसे पढ़कर ना कभी क्रुद्ध हों !
उनके जीवन के मार्ग न कभी अवरुद्ध हों !
रचना की हर पंक्ति ही लय में छंदबद्ध हों !
पूरी रचना ही किसी ख़ास रस से पुष्ट हों !
पर कुछ महानुभाव ऐसा कदापि नहीं सोचते !
वे तो बस अपनी ही लय में लिख जाते हैं !
ऐसे कुछ लोग तो बस, यूॅं ही लिख जाते हैं !!
ऐसे लोग बस,अपने दिल की ही सुनते हैं !
औरों से उन्हें कभी भी कोई वास्ता नहीं !
पाठकों की अपेक्षाएं तक उन्हें पता नहीं !
उन्हें बस खुद की ही सदैव फिक्र होती !
वे बस, खुद की ही सोचने को आमादा होते !
अपना नफा-नुकसान देखकर ही रचना लिखते !
वे दुनिया से बेफिक्र बस, यूॅं ही कुछ लिख जाते हैं !!
उनकी तरह आप कदापि ऐसा कुछ ना करें !
कुछ भी लिखने से पहले जरा सोचें समझें !
देश दुनिया की भलाई के बारे में भी कुछ सोचें !
सशक्त लेखनी से देश के ज्वलंत मुद्दों का हल ढूंढ़ें!
आप ये मत सोचें कि आपने कितना लिखा !
आप सदैव ये सोचें कि आपने ऐसा क्या लिखा…
जो देश के अहम मसलों से ताल्लुकात रखती हों !
देश के विकास के लिए लोगों को प्रेरित करती हो!
देश की एकता, अखंडता को अक्षुण्ण रखती हो !
देश की गरिमा को दुनिया में सर्वोच्च रखती हो !
आपसी प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का संदेश देती हो!
हर क्षेत्र, भाषा, जाति व धर्म में समन्वय रखती हो !
गरीबों की दुर्दशा की ओर सरकार का ध्यान खींचती हो !
एक रचनाकार की लेखनी जब लोगों के हित के लिए हो!
तो वो रचनाकार सबसे बड़ा खुशनसीब क्यों ना हो…?
पर कुछ रचनाकार ऐसा करना उचित नहीं समझते !
वे तो बस, यूॅं ही किसी अनर्गल विषय पर लिखते जाते !
तो क्यूॅं ना कहें हम…”कुछ लोग बस, यूॅं ही लिख जाते हैं !!”
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 05-08-2021.
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