कुछ लोग तुम्हारे हैं यहाँ और कुछ लोग हमारे हैं /लवकुश यादव “अज़ल”
पुरानी यादों के समंदर जैसे यहाँ बसेरे हैं,
कुछ लोग तुम्हारे हैं यहाँ और कुछ लोग हमारे हैं।
उलझती शाम तेरी होगी महबूब के मक़तूबतों में,
तुम्हारे घर रौशन हुए तो हमारे घर उजाले हैं।।
हम थोड़ा ज़िद्दी हैं और शहर के उजाले हैं,
किस्मत से कुछ भी नही हुआ है हमें हासिल।
माँ बाप और कुछ खास दोस्तों के लाडले हैं,
कुछ लोग तुम्हें प्यारे हैं और कुछ लोग हमें प्यारे हैं।।
सहमति रख लो अज़ी हम गैर ही सही हैं,
फ़लक से धरा तक हम सबसे निराले हैं।
जब कलम उठाई तो गीत लिखे हमने ऐसे,
और लोगों ने कहा ये दिल के बादशाह हैं।।
टूटी कश्तियाँ तो हम खुद के सहारे हैं,
जम्मू की धरा पर खिल उठते जैसे शरारे हैं।
रात ओझल सी परछाई में महकते गुलाब,
कैसे कहें की तुम हमारे और हम तुम्हारे हैं।।
प्रहार करते नहीं हैं किसी पर बेवजह के अज़ल,
क्योंकि जो तुम्हारे मुँह पर तुम्हारे हमारे मुँह हमारे हैं।
पुरानी यादों के समंदर जैसे यहाँ बसेरे हैं,
कुछ लोग तुम्हारे हैं यहाँ और कुछ लोग हमारे हैं।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश