कुछ लोगो की चालाकियां खुल रही है
कुछ लोगो की चालाकियां खुल रही है
परत दर परत…
कितना ऊंचा ओहदा …. था जो कभी .तुम्हारा नजरिया
टूटकर बिखर गया अभी अभी….
मासूम सी शख्शियत अपनी और साजिशे भी कमाल की….
क्यूं इतनी जहमत की …जरा सब्र तो करते…
हम खुद ही” वार “(न्योछावर)देते तुम्हारे लिए
कहकर आजमा तो लेते ….
गैर का दे साथ…खंजर पीठ पर “वार”(उतारना, चोट)
नज़र से ही तो गिरे थे कभी…
तुम आज रुह से भी उतर गए तुम…
तुझ बिन न श्वास .. ना आस विश्वास…
बसा था जो कभी दिलो दिमाग में ..हर श्वास में
टू ट कर बिखर गया वो श्वास अभी अभी…
.✍️”अश्रु”