कुछ लफ्ज तेरी यादों के
कुछ लफ्ज तेरी यादों के आज पिरोता हूं
आज भी तेरी यादों का स्यन्दन चलाता हूं
समा जाती थी मुझमें
आकर मेरे आगोश में
स्पन्दन तेरे हृदय का आज भी महसूस करता हूं ,
कुछ लफ्ज तेरी यादों के आज पिरोता हूं ।
वह तन्वंगी दीपित ज्योत्स्ना सी सुन्दर काया
अविरल स्निग्ध नदी सी चंचल माया
फिरते जिस पर चपला के कर्णधार
उर्मिल अविरल सा केशों का साया,
वो घने केशपाश आज भी याद करता हूं
कुछ लफ्ज तेरी यादों के आज पिरोता हूं ।
देख तेरा शाश्वत श्रृंगार अपलक निहारता हूं
देख तेरी सुस्मित सूरत नवल गीत गाता हूं
देख तेरा भाव समर्पण
उद्गार हृदय के सजाता हूं ,
खोकर तुझमें अपने को स्वप्नों को बुनता हूं
कुछ लफ्ज तेरी यादों के आज पिरोता हूं ।
वो आंखों में कज्जल हिरणी चितवन
वो तेरे होंठों की सिहरन
खिल उठे नयन जैसे खंजन
शैलमालाओं में आगंतुक सा
निरख प्रिये तेरे नन्दन में आये रंजन ,
“आनन्द” छोड़ अपने भाव-भुवन
कवि मुक्ता-फल चुनता हूं
कुछ लफ्ज तेरी यादों के आज पिरोता हूं ।।
– आनन्द कुमार
हरदोई (उत्तर प्रदेश)