कुछ रूप जिन्दगी के
रूप जिन्दगी के:-
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जिन्दगी जैसे डाल की चिडिया ,
छोड कर नीड फुर्र उड जाती ।
साँस की डोर पर पतंग तनी,
पेच लडते हैँ और कट जाती ।।
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जिन्दगी रुख पै पडा घूँघट है ,
देख लेने को ललक उठती है ,
पर हकीकत जो नजर आती है ,
अच्छे अच्छोँ की नजर झुक जाती ।।
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जिन्दगी है दुल्हन की अँगडाई ,
करती है इन्तजार प्रियतम का ।
डोली चढती है सनम आते ही ,
और आगोश मेँ सिमट जाती ।।
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जिन्दगी ख्वाब भरी निँदिया है ,
जाग कर जिसको देखा जाता है ।
पर हकीकत की नीँद आने पर ,
खुद ही ख्वाबोँ से दूर हट जाती ।।
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जिन्दगी है पडाव कुछ पल का ,
ये कहानी है कारवाँ की किसी,
जिन्दगी फासला है मंजिल का ,
जिसको तय करते उम्र कट जाती ।।
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जिन्दगी जैसे डाल की चिडिया .
छोड कर नीड फुर्र उड जाती ,
साँस की डोर पर पतंग तनी,
पेच लडते हैँ और कट जाती ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
6- बैंक कालोनी , महोली रोड़,
मथुरा -281001