कुछ रिश्ते भी बंजर ज़मीन की तरह हो जाते है
कुछ रिश्ते भी बंजर ज़मीन की तरह हो जाते है
शून्य से
वही शून्य जिसकी कोई value नहीं पर ज़िंदगी में अहम किरदार निभाते है
ये वो बंजर ज़मीन होती है
जिसपे हम बेतहासा मेहनत करते है
ताकि हमें ये कुछ दे सके या ना दे सके पर कम से कम उस रिश्ते या कह लो की उस ज़मीन को कोई ग़लत ना बोलें
पर अंतता हमें मिलता क्या है?
जैसे उस किसान को जो सालो से उस ज़मीन पे मेहनत करता रहता है और कोसिस करता रहता है की कुछ तो हो भावनायें गूंजे या कम से कम वो ज़मीन बंजर ना रह जाए या ना हो तो उस ज़मीन से बंजर होने का तमग़ा ही हट जाए वो लाख कोसिस करता रहता है लगा रहता है तब तक जब तक वो अपना सब हार नहीं जाता
पर किसी दिन हमें किसी अख़बार में ये लिखा मिल जाता है
“किसान हिम्मत हार गया सब कुछ सही करते करते “
वैसे ही कुछ लोग बंजर रिश्तों को उपजाते रहते है
तब तक
जब तक अपना सब हार नहीं जाते
और अंतता खुद हारकर ख़त्म हो जाते है 😊