कुछ राखो नाथ भंडारी
बंधी हुई है कब से आस तुम्हारी,
सूने विदेशवा में बीते, कितने दिन मास नहीं दो चारी।
कुछ राखो नाथ भंडारी…. कुछ राखो नाथ भंडारी….
कभी वे भी गए कभी हम भी रहे हैं,
गिन गिन सांस गुजारी, किसी लम्हों में मिल भी गए तो,
शिकवे शिकायत अड़ गए बंद दिवारी।
कुछ राखो नाथ भंडारी…. कुछ राखो नाथ भंडारी….
चंद तड़प में झुलस ना जाए, खाकर चोरी गम में लाल अंगारी
लिखते पढ़ते चिठ्ठीयां अब तक, अखियां रोई हाथ लगी ना डोरी
कुछ राखो नाथ भंडारी…. कुछ राखो नाथ भंडारी….
कट गए हो तो दिन गर्दिश के, कर दो भगवन अब उपकारी,
दुनियां देखे ना खड़ी तमाशा, मै बिरहा नाचू बीच बजारी,
कुछ राखो नाथ भंडारी…. कुछ राखो नाथ भंडारी…. ।।