कुछ यादें अल्पांजली 2 से
काला मन जिसका हुआ,चढ़े न दूजो रंग।
जितना दूध पिलाइये,बदला कभी भुजंग।।
मैं खुद भुगतूं आप ही,उसकी जो हो रज़ा ।
तू काहे चिंता करे, अपनी गिन तू सज़ा ।।
चोर श्राप अब दे रहे,अल्लाह कर इंसाफ।
जिसके 2
उसके पूरे कर रहा , ईश्वर रोज़ हिसाब ।
सारे पन्ने फट गए, बिखरी कहीं किताब।।
संजय पाहूजा