कुछ मुक्तक
विधा-मुक्तक (२१ मात्रिक)
प्रदत्त विषय- #कर्त्तव्य (एक प्रयास)
छू सके दुश्मन न सरहद ख्याल रखना।
देश के प्रति है यही कर्त्तव्य अपना।
जान की बाजी लगानी भी पड़े तो-
राष्ट्र रक्षा में कभी पीछे न हटना।
साँस है जबतक हृदय में, देह में है जान।
छीन सकता है न कोई, हिन्द की मुस्कान।
राष्ट्र रक्षा यदि बना लें, सब प्रथम कर्त्तव्य-
‘सूर्य’ जबतक है रहेगा देश हिंदुस्तान।
साँस है जबतक हृदय में, देह में है जान।
छीन सकता है न कोई, हिन्द की मुस्कान।
प्रण करो मिलकर सभी यह, त्याग देंगे बैर-
विश्व में होगा प्रथम तब, देश हिंदुस्तान।
मँहगाई उत्कर्ष पर, रोजगार है अल्प।
चिंतन मंथन कर लिया, मिलता नहीं विकल्प।
गिरगिट जैसा हाल है, नेता सारे चोर-
काम-धाम करना नहीं, करते हैं संजल्प।
डायन मँहगाई है आज, करूँ क्या बोलो।
अब मिटे नहीं यह भूख, मरूँ क्या बोलो।
रोजी-रोटी सब खत्म, नहीं कुछ आशा-
इस रिक्त उदर में घास, भरूँ क्या बोलो।
जाति धर्म के पेंच में, देश हुआ बेकार।
दुश्मन खुद का हो गये, और हुए लाचार।
नेता सब इस बात का, किए बहुत उपयोग-
रोजगार मत माँगिए, करिए जय जयकार।
फर्ज अपना निभाना होगा।
कर्ज मिट्टी का चुकाना होगा।
है यही कर्त्तव्य सबका दोस्तों-
देश दुश्मन से बचाना होगा।
क्षमा करो हे नाथ।
देना मेरा साथ।
दूर करो अज्ञान-
सर पर रख दो हाथ।
हुआ भूल जिससे वो’ अंजान है।
क्षमाशील का जग में सम्मान है।
सभी को सुधरने का’ मौका मिले-
क्षमा दान सबसे महादान है।
#रोजगार
रोजगार की आस लगाए।
बैठे बैठे मन घबड़ाए।
हाय योग्यता हुई निरर्थक-
उम्र रोज बढ़ती ही जाए।
#मँहगाई
रोज-रोज बढ़ती मँहगाई।
जेब रिक्त रहता है भाई।
बिटिया की शादी करनी है-
माँ को कैसे मिले दवाई।
#कर्त्तव्य (एक प्रयास)
ऊंचा रहे तिरंगा प्यारा।
पहला यह कर्त्तव्य हमारा।
राष्ट्रहितों में कर देना है-
न्योछावर यह जीवन सारा।
भूख गरीबी रोग, पड़ेगा सहना।
तड़पो तुम दिन-रात, कभी मत कहना।
जालिम यह सरकार, धर्म में उलझी-
रोजगार की बात, सदा चुप रहना।
नित्य करो चिंतन।
निर्मल होगा मन।
योग करो भाई-
सुखमय हो जीवन।
जीवन जीना है यार, बहुत दुखदाई।
बढ़ती जाती है रोज, बड़ी मँहगाई।
हक मार रहे सब लोग, गरीबों का अब-
मुश्किल है रोटी दाल, समय पर भाई।
क्षमा करो हे नाथ।
देना मेरा साथ।
दूर करो अज्ञान-
सर पर रख दो हाथ।
क्षमा करना मुझे भगवन, तुम्हारा दास अज्ञानी।
नहीं है ज्ञान, है अभिमान, सदा करता है’ नादानी।
सुपथ पर ले चलो मुझको, दिखा दो सत्य की राहें-
सदा हो दूर लालच, मोह, मुख में हो मधुर बानी।
क्षमा करो अज्ञानता, बालक मैं मतिमंद।
लालच, ईर्ष्या, मोह का, मुझमें है मकरंद।
सत्य मार्ग पर ले चलो, ऐ मेरे भगवान-
लिख दो मेरे भाग्य में, द्वेष रहित आनंद।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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