कुछ मुक्तक
मुक्तक
गंगा मां की हर बूंद है मां- सी
जहां पहुंचती बन जाती काशी
खेतों में पहुंच भर देती भंडार
त्रिवेणी कहीं सागर बन जाती।।
बढ़ते हैं साल उम्र के तो बढ़ने दीजे
दिल में उठते सपनों को न मरने दीजे
मौत तो एक सच्चाई है सब जानते हैं
वक्त से पहले ही खुद को न मरने दीजे।
मेरे मन की बात तुम्हारे भी मन में आये
मेरे दुख का दर्द तुम्हारी संवेदना बन जाये
मैं हूं खुश तो हंसी तुम्हारे चेहरे पर भी हो
रिश्तों की गरिमा का परचम हमेशा लहराये ।
आज सूरज से आंख मिलाने का मन होता है
हिम्मत का लिबादा ओढ़ाने का मन होता है
आकाश की ऊंचाइयां अब हो गई सब अपनी
सबका आकाश में पंंख फैलाने का मन होता है।