कुछ मुक्तक कीर्ति छंद पर आधारित
★★कुछ मुक्तक★★
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हम टूट गए इतने हैं
हर कष्ट लगे अपने हैं
वह पूर्ण हुए न हमारे
सपने अब भी सपने हैं।।1।।
धन खातिर तो घरवाले
दिल में करते अब भाले
वह मान कहाँ घर में हो
धन-दौलत के जब लाले।।2।।
मिलते जुलते हम आये
सच का बस साथ निभाये
हमको कह पागल भाई
दुनिया कितना मुसकाये।।3।।
मिलती भर पेट न रोटी
सबको मिलती न लँगोटी
सरकार हमें बहलाये
बस लेकर नीयत खोटी।।4।।
मत देकर के जलते हैं
जन हाँथ यहाँ मलते हैं
अगुआ मन भीतर सारे
बस पाप लिए चलते है।।5।।
पद पाकर है मदमाते
दुख देखन हैं कब आते
मरते मतदान किये जो
वह दौलत दौलत गाते।।6।।
-आकाश महेशपुरी
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●कीर्ति छंद पर आधारित (मापनीयुक्त वर्णिक)
मापनी- 112 112 112 2