कुछ मासूम स्त्रियाँ!
कुछ मासूम स्त्रियाँ!
होती है सहनशील,
सशक्त और उच्च विचारों वाली,
पर अक्सर हो जाती है पराजित,
कभी उदास तो कभी हताश,
और वजह होती हैं कुछ स्मृतियाँ,
जो लाख चाहने के बावजूद,
नही जाती उनके मन से,
करती हैं उन्हें बेचैन,
और जताती हैं कुछ ऐसा,
कि बिगड़ी है अगर बात
तो बस कुछ…
हम ही में कमी होगी।
क्योंकि उनके अपने ही डाल देते हैं,
बेवजह के अपराध में,
और वो बस ढूंढती रह जाती हैं,
खुद में खामियाँ,
हर पल सोचती रहती हैं,
क्या है हममें कमियां ?
और बस यही सोचते-सोचते,
मान लेती हैं कि हम इंसान ही बुरे हैं।
हमारे रूप-रंग में कमी है,
हम शायद औरों की तरह बेहतर नही।
या फिर शायद कुछ और ही…
पर कुछ तो कमी है,
यही सोचकर वो चली जाती हैं,
डिप्रेशन में भी।
पर ये समाज,
ये तो बस ढूंढता है,
स्त्रियों में कमियां,
मानता है उन्हें बेहतर,
जो झूठ बोलकर भी
फिट बैठते हैं…
समाज के हर पैमाने पर।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖊️