*कुछ भी नया नहीं*
कुछ भी नया नहीं यहाँ
सब कुछ पहले जैसा है!
मुसीबतें पूर्ववत् मौजूद
फिर नववर्ष यह कैसा है!!
न मौसम में बदलाव कोई
न ऋतुओं में परिवर्तन है!
धोखाधड़ी पहले जैसी ही
भ्रष्टाचार को समर्थन है!!
न फसल चक्र शुरू हुआ
नहीं बदले बाग बगीचे हैं!
कपटजाल राज कर रहा
मेहनतकश सबसे नीचे हैं!!
न खानपान में हेराफेरी
नहीं भास्कर पथ बदला!
छल बर्ताव पहले भी था
द्वेष करने की मौजूद कला!!
चंदा मामा भी पहले जैसा
पहले की तरह गति करता!
प्रतिभा पलायन वर्तमान है
मेहनतकश भूखों मरता!!
पृथ्वी , जल भी वैसे ही हैं
पहले की तरह अग्नि मौजूद!
वायु तत्व वैसे ही बह रहा
पहले की तरह नभ वजूद!!
पहले की तरह भूख लगती
कल वाला ही खानपान है!
अपराधी सरेआम घूमते
निर्दोष की जाती जान है!!
नया आज भी उपेक्षित
नहीं कुछ क्रांतिकारी है!
किसानों पर जुल्म हो रहे
अव्यवस्था सर्वत्र भारी है!!
शिक्षित होकर बैठे निठल्ले
युवावर्ग बेरोजगार घूमता!
धन दौलत की सर्वत्र पूजा
चापलूस सफलता चूमता!!
नई शिक्षा में कुछ नया नहीं
शिक्षा का हुआ बेड़ा गर्क!
अंधविश्वास चहुंदिशा में है
महत्व नहीं कोई भी तर्क!!
राजनीति में नीति नहीं है
धर्म में कोई रहा नहीं धर्म!
नैतिकता नहीं आचरण में
धर्माचार्य कर रहे कुकर्म!!
कर्ममार्गी धक्के खा रहे
सफलता रिश्वत की गुलाम!
केला कीन्नू संतरा विषाक्त
खाने को विवश सडे हुये आम!!
पेयजल हेतु हाहाकार है
सहजता से मिलती शराब!
प्रश्न करने पर रोक लगी है
नेता कोई नहीं देते जवाब!!
नया क्या कोई तो बतलाये
सब कुछ वही सडा गला है!
चरित्र के धनी बने दुराचारी
संवेदनशील का नहीं भला है!!
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आचार्य शीलक राम
वैदिक योगशाला
कुरुक्षेत्र