कुछ बूंदें
अवसाद के काले धब्बों को
चेहरे से मिटाने लगी हैं, कुछ बूंदे
बादलों से रिसकर
माथे पे ठहरे सूखे दर्प को
धोने लगी है, कुछ बूंदे
कुछ ठण्डी हवाओं में छिपकर
त्वचा पे हल्की-हल्की उतर आई हैं
कभी छपाक से कुछ बूंदे
सीरत की हर नफ्ज़ पे उभर आई हैं।
कभी घाव के निशान को
हरा कर दे रही हैं, कुछ बुँदे
नजरों से उतरकर भी
खून में उबल रही हैं, कुछ बूँदे
कुछ मिहिर से बेइंतेहान नफरत में
रातों को चुपके-चुपके बरसती हैं
कभी खामोशी में बेबाक कुछ बूँदे
झरने के हुबहु गरजती हैं।
अपने भीतर समेटे, विशाल समंदर से
सराबोर हैं, कुछ बूँदे
उम्र भर की चाहतों का
बहता सैलाब हैं, कुछ बूँदे
कुछ नए गैहान की फिराक में
पल-पल सिमटती,
वो बैचेन रहती हैं
कभी समंदर से खफा, ये बेसब्र बूँदे
दरिया की शक्ल में, एक नई दिशा बहती हैं ।
मिजाज का सूखा-भीगा
एहसास हैं कुछ बूंदे
लम्हों की ताजगी का
नया रूबाब हैं,कुछ बूँदे
कुछ सुर्ख गालों से ढुलककर
धीमी-धीमी महक चुरा लाई हैं
कभी आंखों से बहकर
बेजार कुछ बूंदे,
अपने ही गुमान में
चेहरे के एक ओर उतर आई हैं।
एक दफा ये बा अदीब, बा इकबाल
तो एक दफा अलहड़ भी हैं, कुछ बूँदे
दुख में मीठा-सा आब ये
तो कभी कसाव-सा
आब ए तल्ख हैं, कुछ बूंदे
कुछ उरूज़ के मोहभंग से
अब जरा जरा इठलाने लगी हैं
कभी जज्बातों से लबरेज, कुछ बूँदे
थोड़ा ज्यादा, थोड़ा कम
सब बताने लगी हैं।
शिवम