कुछ बीते हुए पल -बीते हुए लोग जब कुछ बीती बातें
वख्त बे वख्त – कुछ आज की बातें ,
कुछ बीते हुए पल -बीते हुए लोग
जब कुछ बीती हुई बातों से
गुजरा समय छू जाता है
तब जुबाँ खामोश रहती है
और बंद आँखें
अपना ही बीता वख्त देखतीं हैं !
एक मुस्कान सी उभर आती है
जब अपने अंदर का
वो बदमाश बचपन झांकता है
वो पल भी देखता हूँ
एक चमचमाती चवन्नी की लालसा
और अपनी दादी के चिलम में
मीठा दो-रस्सा तम्बाकू डाल
कोयले को फूँक लगा सुलगाना
पर चुपके से सटक पर कपड़ा लगा
एक दो कश लगाना वो भी दिखाई देता है
वाह – वो पल भी – क्या सुख देता था !
सच में – लगता है
के काश फिर लौट पाता
बस सिर्फ एक बार –
और मनुहार करता – मना लेता
जो रूठे थी खेल खेल में
गीले शिकवे दूर कर आता
दौड़ कर पूछ आता –
मोहल्ले की बूढी नानी से
के तेरे घुटने का दर्द कैसा है
झोली में अपनी ही रसोई से
फिर कुछ हरी सब्जी दे आता
और झोला भर दुआएं ले आता
मंदिर की आँगन का कोना
आज खाली होगा
नहीं होंगे मोहल्ले के कल्लू चचा
ना ही होंगे अंग्रेजों के लड़ाई के किस्से –
अब कोई बिरसा मुंडा
की बातें नहीं सुनाता होगा
अब अरमानी और गुच्ची की बात होती है
जग्गनाथपुर मेले की बात नहीं होती
न्युक्लियस मॉल में नया क्या है
इन बातों की बात होती है
आज जब की सबकुछ थम गया है
इस लॉकडाउन ने
बीते समय के किताबों की
लाइब्रेरी खोल दी है –
आज फिर कुछ बीते हुए पल –
बीते हुए लोग कुछ बीती हुई बातें –
कुछ घर – कुछ मोहल्ले में गुजरा समय
सालों बाद फिर से छू गया और
अंदर का बचपन फिर झाँक रहा है
और जुबाँ खामोश है ………………..