कुछ बिखरे ख्यालों का मजमा
कुछ बिखरे ख्यालों का मजमा
बुलंदियों के आसमान पर चमक रहा है बन कर सितारा,
चाहे कितनी भी कोशिश कर ले गर्दिश ज़माने की,
चमकता ही रहेगा;आफ़ताब से कम नहीं हिन्दुस्तां हमारा।
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पता नहीं क्यों दुनियाँ के सियाने देश ये समझ नहीं पाते हैं
कि साँपों को दूध पिलाने वालों को अक्सर सांप ही डस जातें हैं।
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कभी कभी इंसान ऊपरवाले को भी मात दे देता है ,
वो नहीं बदल सकता इतिहास,इंसान बदल देता है।
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ख़वातीन की बहबूदी होने वाली है अब बे-मिसाल,
ज़रा हौसला तो रखिये हज़रात सात-आठ साल।
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कारीगरी उनके लफ़्ज़ों की क्या कहिये जनाब,
बदहाली को भी खुशहाली का जामा पहनाते हैं।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त,
फिर भी वो हक़ीक़त को जन्नत बताते हैं।
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कोई धर्म के लिये क्यों लहू बहाये !
जरुरी है हर शख्स सोचे,समझे और ये जान पाये,
कि वो धर्म ही नहीं है जो हमें इंसान न बनाये।
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डॉ हरविंदर सिंह बक्शी
24-9-2023