कुछ फूल तो कुछ शूल पाते हैँ
कुछ फूल तो कुछ शूल पाते हैँ
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कुछ लुट जाते हैं तो कुछ लूट जाते हैं,
कुछ फूल पाते हैं तो कुछ शूल पाते हैं।
कुछ गरज के गर्जी जनहित क्या जाने,
कुछ याद आते हैं तो कुछ भूल जाते हैं।
मन मैल में मैले मय में मदमस्त मतवाले
कुछ धुल जाते हैं तो कुछ धूल पाते हैं।
कुछ कोप से कोपित क्रोधी हैं अपराधी,
कुछ गरमी से भरे तो कुछ कूल होते हैं।
कुछ फ़ितरत से भरे फितरती मनसीरत,
कुछ ब्याज में अंधे तो कुछ मूल होते हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)