कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
ग़ज़ल
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
और हम प्यार की बारिश में लगे रहते हैं
काम अंजाम ख़मोशी से भी देते कुछ लोग
और कुछ लोग नुमाइश में लगे रहते हैं
बुत बना लेते हैं कुछ लोग अना¹ का अपनी
और फिर उसकी परस्तिश² में लगे रहते हैं
क्यों न किरदार चमकदार नज़र आयेगा
चाटुकार उनके जो पाॅलिश में लगे रहते हैं
घोंटना पड़ता गला बाप को अरमानों का
बच्चे फ़रमाइश-ओ-ख़्वाहिश में लगे रहते हैं
जो है मंजूर-ए-ख़ुदा सिर्फ़ वही होना है
लोग बे-कार ही साज़िश में लगे रहते हैं
क़ाबिल-ए-दाद³ नहीं शे’र मेरे फिर भी ‘अनीस’
आप बस यूं ही सताइश में लगे रहते हैं
– अनीस शाह’ अनीस’
1.अना=ego 2. परस्तिश=पूजा 3.क़ाबिल-ए-दाद=प्रशंसा के योग्य
Anis Shah