********* कुछ पता नहीं ********
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क्या होगी उनसे बात कुछ पता नही,
मिल पाएगी दो आँख कुछ पता नहीं।
सांसों की हल चल मार मारती बड़ी,
बच जाएगी यूँ शाख कुछ पता नहीं।
भावों मे हम बहकर बिखर डगर कहीं,
हो जाएगा सब राख कुछ पता नहीं।
अभिलाषी मन चंचल मचल उठा रहा,
मिट पाएगी मन प्यास कुछ पता नहीं।
अरमानों की है बंद पोटली खुली,
खुशियाँ झोली लाख कुछ पता नही।
अरसे से बैठे राह ताकते यहाँ,
पूरी होगी कुछ आस कुछ पता नही।
मनसीरत गीले नैन आंसुओं भरे,
बरसेगी जम बरसात कुछ पता नही।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल(