कुछ नहीं चाहिए
शीर्षक
( कुछ नहीं चाहिए )
नित ध्याऊं तुझे,
बस यही चाहिए
मातु ममता सिवा
कुछ नहीं चाहिए
तूं विचारों की जननी
मैं वंदन करूं
प्रति-पल मैं तेरा
अभिनंदन करूं
मेरे सत्कर्म से
शुचि मन हो मेरा
तेरे आशीष से
माथे चंदन करूं
शांति की मांग है
बस यही चाहिए
मातु समता सिवा
कुछ नहीं चाहिए
युक्ति हूं मांगता
निरुपायों को दे
सद्बुद्धि भरा दिल
दुआओं को दे
दीन – हीनो को सुस्ती
से मुक्ति मिले
गर्द हटाने की गति
इन हवाओं को दे
हों सबल तुच्छ भी
बस यही चाहिए
मातु क्षमता सिवा
कुछ नहीं चाहिए
अकिंचन रहा
बेसहारा सदा
करूं कैसे अदा
ये जो ऋण है लदा
सोचता हर घड़ी
दिन- प्रहर बेबसी
लगता है कभी
ये ना होंगे जुदा
दे बल विनीत को
बस यही चाहिए
‘रागी’ रमता सिवा
कुछ नहीं चाहिए
✍️ हस्ताक्षर ✍️
राधेश्याम ‘रागी’ जी
कुशीनगर उत्तर प्रदेश
Ⓜ️ : 9450984941