कुछ नहीं कर पाएंगे
आज,
तोड़े जा रहे हैं पहाड़
अंधाधुंध काटे जा रहे हैं पेड़
किये जा रहे हैं
विज्ञान के नित नए आविष्कार।
धरती के गर्भ को भी
क्षत-विक्षत करने का
जारी है सिलसिला ।
पर अब रोज-रोज के
इन अत्याचारों से
सुगबुगा रही है धरती
बदल रहे हैं मौसम के मिजाज
जल रहा है आसमान
उबल रहे हैं
दोनों ध्रुवों के हिमखंड ।
आएगा एक दिन
जब प्रकृति के कोप
के आगे हम नतमस्तक हो जाएंगे
लाख चाहकर भी
अपने बचाव के लिए
हम कुछ नहीं कर पाएंगे।
डॉ. विवेक कुमार
तेली पाड़ा मार्ग, दुमका, झारखंड।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)