कुछ द्वीपदियाँ
कुछ द्वीपदियाँ
1 : फितरत
छीन लूँ हक किसी का,
ऐसी फितरत नहीं.
आईना जब भी देखा,
खुशी ही हुई.**
2: नियति
नियत तो अच्छी थी,
पर नियति की नीयत बिगड़ गई *
जीवन के थपेड़े खाते- खाते
वह महलों से वृद्धाश्रम पहुंच गई *
3: इंसानियत
बाजार सज गए हैं…
चलो इंसानियत खरीद लाएँ ***
4: सामंजस्य
सामंजस्य नहीं था बिल्कुल
फिर भी जिन्दगी काट दी **
यह सोचकर कि
दुनिया क्या कहेगी…..**
5: जिन्दगी
कैसे कह दूँ कि जिन्दगी
कठिन से सरल हो गई है.
वक्त का असर तो देखो यारों…
अब तो ‘सुधा’ भी गरल हो गई है…