कुछ दोहे
1.
माँ ब्रह्मा माँ विष्णु है, माँ ही रूप महेश।
माँ सृष्टि स्वरुपा है,माँ प्रकृति परिवेश।।
2.
प्रथम पूज्य गणपति नमन,हरो कष्ट गणराज।
कृपा करो मुझ दीन पर,चित्त विराजो आज।।
3.
समझ समझ का फेर है, समझे वही सुजान।
कैसे हो नासमझ को, सत्य तत्व का ज्ञान।।
4.
निज उर हैं ज्ञानी सभी,सीख सभी परमार्थ।
देय सीख जो ओर को,खुद न करें चरितार्थ।।
5.
सही-गलत जाने सबहि,अपनाए वह ज्ञान।
नहीं मात्र उपदेश हैं, केवल हिले जुबान।।
6.
मान बड़ों को दीजिए , ध्यान रखें श्रीमान।
विनयशीलता सरलता,सज्जन की पहचान।।
7.
गुरु गुरुत्तर गोविंद से , महिमा बड़ी महान।
गुरु शिष्य पर कृपा करें,आये खुद भगवान।।
8.
तन-मन-धन, जीवन करे,अर्पण देश हितार्थ।
देश भक्त सच्चा वही , होवे सभी कृतार्थ।।
9.
पर दोष दर्शन ‘अजेय’, देय सदा संताप।
भला यही है ‘अकिंचन’,निज त्रुटि ढूंढें आप।।
10.
दोष स्वयं में देखिये, बाकी सब निर्दोष।
आत्म निरीक्षण ही बड़ा,नहीं करें हम रोष।।
11.
रोज रोज दोहा लिखें, और करें बेगार।
सिर्फ एक ऐसा लिखो,याद करें सब यार।।
12.
अनुपयुक्त कुछ भी नहीं,हो समुचित उपयोग।
ज्ञान सदा मौजूद है , अनावरण ही योग।।
13.
उर की गाँठे खोलिए,अंतर जगे प्रकाश।
स्वयं तथा संसार के,करें, दुखों का नाश।।
14.
निर निमेष चैतन्य का, चेतन से संयोग।
एक बार जो जुड़ गया,होता नहीं वियोग।।
15.
राम नाम सुमिरे सदा, अन्य न कोई काम।
विश्राम मुक्ति चिर शांति,मग्न आत्माभिराम।।
16.
मंगल को मंगल करें,सकल सुधारें काज।
जय वीर बजरंग बली, कृपा करेंगे आज।।
अजय कुमार पारीक’अकिंचन’
जयपुर (राजस्थान) – 302001.