कुछ दोहे
कविता किरकी कांच जस, हर किरके को मोह ।
छपने की लोकेषणा, करे छंद से द्रोह ।
आत्म मुग्ध लेखन हुआ, पकड़ विदेशी छंद ।
ताका, महिया, हाइकू, निरस विदेशी कंद ।
पुलिस, कोर्ट. लोकल निगम, कर्म क्षेत्र बदनाम
बिना गांठ ढ़ीली किये, बनते वहाँ न काम ।
कविता किरकी कांच जस, हर किरके को मोह ।
छपने की लोकेषणा, करे छंद से द्रोह ।
आत्म मुग्ध लेखन हुआ, पकड़ विदेशी छंद ।
ताका, महिया, हाइकू, निरस विदेशी कंद ।
पुलिस, कोर्ट. लोकल निगम, कर्म क्षेत्र बदनाम
बिना गांठ ढ़ीली किये, बनते वहाँ न काम ।