कुछ दोहे से
?कुछ दोहे से?
एक जैसे भावों की,
नकल टीपतेे लोग|
फेसबुकी कविता हुई,
ज्यों संक्रामक रोग||1||
निराला औ’ दिनकर सी,
ढूँढ़ कलम मत आज|
अंगूठे से लिख रहा
ज्ञानी हुआ समाज||2||
तुलसी सूर कबीर हों,
सबकी कहाँ बिसात|
करें कठिन बस साधना,
हृदय लिये जज्बात||3||
✍हेमा तिवारी भट्ट✍