कुछ दिन
कुछ दिन गरीब और रह जा ऐ जिन्दगी ।
राह में तेरे बेशक असंख्य सैलाब आए।
फर्क क्या पड़ता है तुझे उनसे बह जा
या ठहर ले जब तक न मंजिल आ जाए।।
ऐ जिन्दगी थोड़ा तो इन्तजार कर।
क्या डरती है क्यों तड़पती है।
क्या कभी पत्थर भी रास्ता मोड़ती है।।