कुछ तो मेरी वफ़ा का
चलना था साथ-साथ
हमारे तुम्हें मगर,
रस्ते में तन्हा छोड़ के
अच्छा नहीं किया।
कुछ तो मेरी वफाओं का
रख लेते तुम भरम,
हाथ अपने तुमने जोड़ के
अच्छा नहीं किया।
जो मुद्तों से तर था फ़क़त
तेरी याद में,
दामन मेरा निचोड के
अच्छा नहीं किया।
गुमनाम रह के अब हमें
अहसास ये हुआ,
तन्हाई हमने ओढ़ के
अच्छा नहीं किया।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद