“कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलें”
🌹कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलें🌹
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ना तुम आती अपनी आदतों से बाज,
अनसुनी करते हम भी तेरी फ़रियाद ,
सच है, सच्चाई को छूती तेरी हर बात,
पर तू समझ ना पाती मेरे हर जज़्बात,
घुटन सी लगती… एक दूसरे का साथ,
सुनो, कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।
क्यों होता ये अक्सर ही हमारे साथ…
हम नहीं करते एक दूसरे को बर्दाश्त ,
हमें लगता है तेरी हर बात बेबुनियाद,
तुम्हें भी सुकून नहीं देता हमारा साथ,
फ़िज़ूल बहस में होती तबियत ख़राब,
सुनो, कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।
हर कार्य अपने पूरे करता मैं देर रात,
पर तू सदैव कहती करने प्रातः काल,
मैं अपनी धुन में न सुनता तेरी ये बात,
तू भी ज़िद पे अड़ी टोकती दिन – रात,
जो भी हो, ठीक नहीं आपस में ये रार,
सुनो, कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।
लगा रहता दोस्तों का सतत आना-जाना,
मुझे भी पसंद है संग मिलके बातें बनाना,
बिगड़ती दिनचर्या,न कोई वक्त का पैमाना,
इन्हीं बातों पे शुरू हो जाता तेरा इतराना,
छोटी-छोटी बात का यूॅं ही बतंगड़ बनाना,
नापसंद मुझे ज़िंदगी का यूॅं तंगहाल होना,
सुनो…. कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।
जुदा है तेरी हर सोच संग कार्य प्रणाली,
है तू मन की मतंग , थोड़ी सी मतवाली,
हाॅं दिखाती जोश व जज़्बे हिम्मतवाली,
जाता जब मैं पूरब, तू पश्चिम जानेवाली,
विविध सोच से गृहस्थी नहीं चलनेवाली ,
बदलनी ही होगी अब हमारी जीवन शैली,
सुनो…. कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।
ज़्यादा पसंद नहीं करता मैं घूमना-फिरना,
यूॅं ही फ़िज़ूल में अपना वक्त ज़ाया करना,
ज़रूरी होने पर ही चाहता बाहर निकलना,
पर तुझे पसंद नहीं मेरा पुराना सोच रखना,
तू चाहती आज के युग जैसा आगे बढ़ाना,
पर मुझे भी पसंद नहीं तेरा ये ताना – बाना,
फिर भी कुछ बदलाव जरूरी है हमें करना,
अब चलो, कुछ तुम बदलो,कुछ हम बदलें।
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
( स्वरचित एवं मौलिक )
@सर्वाधिकार सुरक्षित ।
दिनांक :- 10 / 05 / 2022.
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