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25 May 2022 · 1 min read

कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।

कशमकश भरी इस जिन्दगी से दूर,
चलो कुछ पल के लिए हम निकलें,
कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।
पलभर की है ये जिंदगानी,
पलभर की ये जवानी है।
फिर क्यों है इतने राग-द्वेष?
क्यों इतनी खींचातानी है?
कसा-कसी की जिन्दगी से,
चलो कुछ दूर हम निकलें,
कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।।
मानव करते मानव से बैर,
दोनों का नहीं है इसमें खैर।
फिर भी षड्यंत्र रचाते हैं,
नर ही नर से टकराते हैं।
छोड़ के सारे रंजिश को,
प्यार के कुछ पल हम जी लें,
कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।।
जो कान फूंकते हैं हरदम,
जन-मन में भेद कराते हैं।
ये वो नेता हैं,जो अपनी रोटी,
दूसरों के चूल्हों पे पकाते हैं।
विकारों को मन से दूर हटा,
हर्षित मन से हम जी लें,
कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।।
न मुट्ठी भरकर हम आए,
न कुछ लेकर के जाएंगे।
जग में भी हमनें जो पाया,
सब यहीं धरे रह जाएंगे।
लोभ मोह का करें त्याग,
स्वच्छंद विचारों को जी लें,
कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।।

🙏🙏🙏🙏🙏
रचना- मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृह जिला- सुपौल (बिहार)
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०-9534148597

Language: Hindi
6 Likes · 6 Comments · 1375 Views

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