कुछ ठिठकी सी यादें
सपनों की दहलीज पे कुछ ठिठकी सी यादें मेरी
बांध लो! धूप के पल्लू में उन राहों की यादें मेरी
सिरहाने पे जो पलों को तुमने ही सज़ा रखा है
खोल दो! सांकल मन की जकडन को बसा रखा है
चादर खुशबू की ओढकर तुमने भी बगिया महकाई
इत्र की मानिंद महका, उन पलों को तुमने ही चहकाई
अपने हिस्से का आस्मां छू आ जाओ तुम भी
बेपरवाह उड़ने दो! बूंद बनके बरस जाओ तुम भी
मखमली सी उन राहों को तलाशों तुम भी अब
एतबार ज़मी पे बिखरने दो! तलाशों तुम भी अब
मनचाहे रस्तों पर अपने पग को रखो तुम
भुरभुरी सी उस मिट्टी की सौधी खुशबू देखो तुम
पांव तले पहचानने की चाहत के कांधे सिर रख
खामोश-हवाओ में खुद का वजूद तलाश कर रख
इजाज़त है तुम्हें, पलकों में बस कर देखो संग मेरे
उन उदिसियो के घर न बसाओ, हसीन वादियों में
भीगा हुआ, बीता हुआ, मौसम वापिस कब आता है
कतरा- कतरा सी यादों में सिमट वापिस सब आता है
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़