कुछ गहरा सा
लिखना तो है
मुझे भी कुछ गहरा सा
जिसे कोई भी पढ़े
बस समझ तुम सको
वह गहराई शब्दों तक
कहाँ पहुँचती है
जो हमारी बातों में थी
शब्द तो सतह पर तैरते हैं
केवल मौन गहरा है
शब्द नहीं है
फिर भी वार्तालाप है
जो पूर्ण है अपने आप में
बस विस्तार है
कुछ सवाल मेरी आँखों के
जवाब तुम्हारी आँखों में हैं
जो बस आँखें ही
कहती समझती हैं
हमारी गूढ़ मंत्रणा
हमारी खिलखिलाहटें
शरारतें नाराज़गी
एक तलाश ज़िंदगी की
जो आँखों में सिमटती है
लिखना तो है
मुझे भी कुछ गहरा सा
जिससे कोई भी पढ़े
बस समझ तुम सको…
©️कंचन”अद्वैता”