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22 May 2024 · 1 min read

कुछ गहरा सा

लिखना तो है
मुझे भी कुछ गहरा सा
जिसे कोई भी पढ़े
बस समझ तुम सको
वह गहराई शब्दों तक
कहाँ पहुँचती है
जो हमारी बातों में थी
शब्द तो सतह पर तैरते हैं
केवल मौन गहरा है
शब्द नहीं है
फिर भी वार्तालाप है
जो पूर्ण है अपने आप में
बस विस्तार है
कुछ सवाल मेरी आँखों के
जवाब तुम्हारी आँखों में हैं
जो बस आँखें ही
कहती समझती हैं
हमारी गूढ़ मंत्रणा
हमारी खिलखिलाहटें
शरारतें नाराज़गी
एक तलाश ज़िंदगी की
जो आँखों में सिमटती है
लिखना तो है
मुझे भी कुछ गहरा सा
जिससे कोई भी पढ़े
बस समझ तुम सको…

©️कंचन”अद्वैता”

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