आज क़ी कविता
फ़ास्ट फ़ूड क़ी तरह है
फ़ास्ट कविता
चलते -चलते गढ़ लिया.
खाते – खाते पढ़ लिया
सोते – सोते देख लिया
न अर्थ जाना, न भावार्थ जाना
न समझा, न किसी को समझाया.
केतली से उड़ेलकर
तस्तरी में रखकर
कप उठाकर पी लिया.
आग क़ी क्या जरुरत
जब चिंगारी ही काफ़ी है.
अपनों से बाते करनी है
फोन नहीं मोबाइल चाहिए
फोर जी नहीं, फाइव जी चाहिए
सिम्पल नहीं, एंड्राइड चाहिए
स्मार्ट दिखने के लिए
स्मार्ट फोन चाहिए.
लोग जानते हैं
जंक फ़ूड घातक है
लोग जानते हैं
तम्बाकू का सेवन जान लेवा है
फिर भी खाये जा रहे हैं
पिए जा रहे हैं.
मशाल के लिए
मुनादी के लिए, दीपक के लिए
प्रोढ़ होना तो
युवावस्था के इतर का काल है,
और युवावस्था व उसकी ताजगी
तत्परता और जिज्ञासा
बचपना छोड़ने का काल है
ऊर्जा, उत -कंठा, स्फूर्ति से युक्त
स्मार्टनेस से संयुक्त है
आज क़ी कविता.
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर