कुछ ख्वाहिशों के साथ..
आज़ाद नज़्म
कुछ ख्वाहिशों के साथ मुलाकातें अधूरी है एक कोना सूना है कुछ बातें रूठी हैं..
टूटी हुई सांसें थके से क़दम है जीने का अरमान लिए चल तो रहें हैं मगर डर और दहशत पैरों में दिख ही जाती है .लोगों की नज़र बहुत तेज़ हैं अहसास भी कराती है कमज़ोर इरादों को लेकर मैं तेरे पास आ नहीं सकती. तेरे दिल में भी आशा का दीप जला नहीं सकती..तू मुझे मैं तुझे जानते तो है पर समझते है क्या,..
ये सोच बार बार मुझे और कमज़ोर बना जाती है पर तेरी याद तो हर वक्त आती हैैै घावों पर मरहम लगा हो वही काफ़ी है खुले घाँव बार बार पक जाते है दर्द और जलन दे जाते है.मेरी बातों को समझने की कोशिश कर सको तो करना मेरी बातें मेरी जीस्त सी अधूरी होंगी वर्ना..
सूरज न सही चाँद और जुगनू से रहों
स्याह रात में थोड़ी तो चमक दो मुझको
मनीषा.जोशी मनी..
ग्रेटर नोयडा