* कुछ ख्वाब सलौने*
“कुछ ख्वाब सलौने रोज दहलीज पर
मुझसे मिलने आते हैं
आसमान में चमकीली चादर बिछाये
मुझे नीलें गगन में रोज उड़ाते हैं
अरमान भी है मेरे थोड़े
जो हकीकत से मिल जाए जरा
मेरी छोटी सी है आरजू
वह पूरी हो जाए जरा
यूँ ही कभी सपनों में सहलाते हैं
मुझे मेरे ख्वाब बुलाते हैं
नहीं है इच्छाएं ऊँची मेरी
जो जमीन से जोड़े रखें
मुझको इतना ही मिल जाए जरा
बहुत ज्यादा पाना मुझे गँवारा नहीं
थोड़े में ही खुश हूं मैं
करवटें लेती रहती है
मेरी नन्ही सी दो आँखे
कभी झपकती कभी मचलती
इनको मंजिल मिल जाए जरा
यह ख्वाब मेरे कितना बेचैन कर जाते हैं
खुद को साबित करने की चाह में यह रोज मुझे जागते हैं”