कुछ खो गया
एक हूल उठी सीने मे, मुश्किल पड़ गई जीने मे l
सहते ही रहे हम रोते, यादों में आंसू खोते ll
क्यू प्यार जताया इतना, हमने सच्चा समझा सपना l
अगर बन गई होती तू हीर, तुझे मिलता रांझा पीर ll
दिल से निकला ऐसे, छोड़े सांप कैचलुी जैसे l
ना वापिस फिर से घुसता, जीवन भर रगड़े मे मरता ll
पर सॉप नही भूला था, कभी केचुली को छोडा था l
“संतोषी” हरदम ही भटका, क्यू दिया हीर ने झटका ll
जब झूठी बालू हो रेती, ना नींव पड़े मजबूती l
मन स्थिर हो जब प्यार पर, महल बन जाता है फिर “घर” ll