कुछ खामोश सी हो गई है कलम …
कुछ खामोश सी हो गई है कलम ,
जबसे तुमने रंग बदला ,
पहलें तो हर रोज आती थी मिलने ,
और अब आठ दिनों का इंतजार ,
हाय इस फुरसतनेंही मार डाला …
क्युँ बदली तुमने ये चाल ,
क्या हर सवाल किस्सा कहानी होगा ,
क्युँ नही हैं जगह कवितांओंकी ,
क्या दिल का? हाल ,
यूँही बेबसी का शिकार होगा …
लिख हम भी लेते कहानियाँ ,
कंबख्त वक्त जब हमारा गुलाम होगा ,
वो तो दौडाता हैं हमें ,
अब तुमही बताओं ,
हमारी कहानी का लिखना ,
किस पन्नेपर शुरू होगा …
तुम लाती थी रोज एक फुल ,
खुशबू सें हमारा दामन भी महका होंगा ,
लोग पुछतें थे हमें ,
बोलों किस बाग फुल होगा ,
लेकीन अब वो महक नही रही ,
वो फुल भी खिलता नही ,
दोष तुम्हें नही देते हम ,
हमारी आदतो का किस्सा ,
अब बयां होगा …