कुछ ख़त मोहब्बत के
लिखे कुछ ख़त और कुछ बातें मोहब्बत की ।
ख़त में इज़हार है मेरा, दास्ताँ शिद्दत की ।
अगर तुम चाहो तो मुझे ठुकरा सकते हो ,
मुझे तो ख़ूब आदत है, ऐसी ज़िल्लत की ।
मैंने क़ासिद भेजा है साथ, ख़त लेकर ,
तुम थोड़ी इज्ज़त रखना, उसकी इज्ज़त की ।
गुज़ारिश है, मेरे ख़त सम्भाल कर रखना ,
मुहब्बत में ज़रूरत होती है, बरकत की ।
मुझसे इश्क़ नहीं तो, जला देना ख़त सारे,
जी लूँगा, उठाकर अर्थी मोहब्बत की ।
बस एक बार रू-ब-रू होना चाहता हूँ ,
मौत से पहले सैर करनी है, जन्नत की ।
कब से रुके हैं ये, तुम्हारे दीदार को,
दाद देता हूँ, इन अश्कों की हिम्मत की ।
संजीव सिंह ✍
(स्वरचित एवं मौलिक)
द्वारका, नई दिल्ली