कुछ ख़त मुहब्बत के
ग़ज़ल
जिस पे तेरा करम यार है।
फिर कहाँ उस को ग़म यार है।
हर घङी तू ने हर हाल में।
मेरा रक्खा भरम यार है।
मंजिले-इश्क़ में राहबर।
तेरा नक़्शे क़दम यार है।
शोहरतेंजो हैं हासिल मुझे।
‘सब ये तेरा करम यार है।’
पी के अमृत नज़र से तिरी।
बेअसर मुझ पे सम यार है।
कैसे तेरा क़सीदा लिखूँ।
मेरा आजिज़ क़लम यार है।
तेरी चौखट का जो है गदा।
वो गदा मोहतरम यार है।
नाम लब पर है जब से तिरा।
दूर हर एक ग़म यार है।
ज़ाकिरों में है तेरे,क़मर।
ये करम कोई कम यार है।
जावेद क़मर फ़िरोज़ाबादी