कुछ खत मोहब्बत के नाम
कुछ खत मोहब्बत के,जस् उड़ते पंछी,
उन्मुक्त गगन में, जुडे हुए डोर जीवन से.
कबूतर को माध्यम बना, खत उसे डाला.
जीवन को उसके, रंग में अपने ढहाला.
रंग भरे उसने भी अपने,सतरंगी इंद्रधनुषी.
कर दिया रोशन, जीवन को, उभार कर.
जस् उडते पंछी, उन्मुक्त गगन में.
लाख पहरे है, बेडियां बिन कैद की.
कुछ खत मोहब्बत के, खुल गये सब पहरे.
टूट गई सब बेडियां, बस हम और तुम.
आयोजन नहीं ये कोई,सबकुछ नैसर्गिक.
रोक न पाया, लिख डाला,जो याद आया.
तुम्हारी तारीफ के अंदाज, नभ उतर आए.
स्वप्न में भी पढे जाते, कुछ खत मोहब्बत के
महेंद्र तनिक शर्माया मिजाज से तेरे.
ढंग से सो नहीं पाया, जो था सब पाया.
लोग कहते है जीवन में, क्या खोया पाया.
कुछ खत मोहब्बत के,सब पाया सब पाया.
नींद खोई चैन पाया,यही दास्तां जीवन की,
था जीवन में जो सबके सब वापिस लौटाया
~महेन्द्र सिंह हंस
महादेव क्लीनिक,
मानेसर. 122050