कुछ कुंडलियां
कुछ कुंडलियां
01-नैतिक
नैतिक कहलाये वही ,करना ऐसा काम।
लोगों का करना भला,करो देश का नाम।
करो देश का नाम ,मान जग में पाओगे।
परचम ऊंचा सदा,देश का फहराओगे।
कहती सरला बात, रहे न कोई अनैतिक।
करना ऐसा काम, सभी बन जायें नैतिक।।
02-विजयी
होते हैं विजयी सदा,भारत के ही पूत।
उनमें हैं क्षमता भरी,साहस भरा अकूत।
साहस भरा अकूत, देखकर दुश्मन भागे।
झंडा इसका रहे, सभी से आगे-आगे।
कहती सरला बात, लोग जब घर में सोते।
सरहद पर ये वीर, डटे हरदम ही होते।।
03-भारत
सबसे ही सुंदर लगे,भारत देश महान।
समता है इसकी नहीं,सभी करें सम्मान।
सभी करें सम्मान, राम व कृष्ण की धरती।
बसते हैं सब लोग,कई भाषाएं पलती।
सरला कहती ज्ञान,वेद पुराण हैं कबसे।
रहता ज्ञानागार, देश यह सुन्दर सबसे।।
04-छाया
तेरी छाया में पली,काया मिली अनूप।
माया तेरी ही रही ,बढ़ा रंग अरु रूप ।
बढ़ा रंग औ रूप, ज्ञान तुमसे ही आया।
चलने की औकात,मात तुमसे ही पाया।
कहती सरला आज,बात सुन ले मां मेरी।
करना इतना मात ,मिले नित दर्शन तेरी।
05-निर्मल
ऐसा निर्मल है सखी, माता का दरबार,
आये जो इक बार है,आये फिर हरबार।
आये फिर हर बार,करे दरबार की फेरी।
ममता का इक छांव, रही चाहत मां मेरी।
सरला कहती आज, नहीं कोई मां जैसा।
सबकी रखती लाज, लगे सबको ही ऐसा।
06-विनती
सारे मिल विनती करें,दो दर्शन रघु नाथ।
आओ फिर तुम धरा पर,धरो शीश पर हाथ।
धरो शीश पर हाथ,करो मत अब तुम देरी।
व्याकुल सब हैं आज,लगा लो तुम अब फेरी।
कहती सरला आज,प्रभू कितनों को तारे।
तारो हम को नाथ, करें विनती हम सारे।।
07-भावुक
होता भावुक मन बड़ा,जैसे कोमल फूल,
छोटी छोटी बात भी,लगता इसको शूल।
लगता इसको शूल,इसे मत चोट लगाना।
सबका रखना मान,सभी को सुख पहुचाना।
सरला कहती बात, दुखी मन है जब रोता।
जीवन की यह रीत,उसे भी दुख है होता।
08-धरती
धरती है गरिमामयी, वन है इसकी शान।
मत काटो तुम वृक्ष को, इतना कहना मान।
इतना कहना मान,सभी मिल वृक्ष लगायें।
बाग बगीचा लगा,धरा को चलो बचायें।
कहती सरला बात,सभी से विनती करती,
आओ मिलकर आज,सजायें अपनी धरती।
09-मानव
मानव सभी समान है, मत इसको तू बांट ।
कर्म लेख को बांच ले ,पहले इसको छांट।
पहले इसको छांट, नहीं कुछ करना कच्चा।
जो करना यह जान,सभी हो केवल सच्चा।
कहती सरला बात, नहीं बच पायें दानव।
करना यह उपकार,बनो तुम सच्चे मानव।
10-गागर
गागर ले गोरी चली,करें प्रीत की बात,
कान्हा से अनबन हुई, लगे न मन दिनरात।
लगे न मन दिनरात ,करें क्या जतन बताओ।
जाओ सखि तुम आज,जरा उनको समझाओ।
कहती सरला बात,दिखे आवत नटनागर।
सारी अनबन छोड़ ,चलीं सब लेकर गागर।।
11-सरिता
सरिता कल-कल बह रही, शांत भाव से आज,
शोभा अतुलित छा रही,करती खुद पर नाज।
करती खुद पर नाज,अरी हिमपति की बेटी।
लायी अपने साथ, भरे रत्नों की पेटी ।
कहती सरला बात, लगे नव व्याहित वनिता।
जीवजंतु सब आज,देख मोहित हैं सरिता।।
12-गहरा
मानव मन गहरा सखी,सके न कोई माप।
सागर का भी नाप है,मानव मन बेनाप।
मानव मन बेनाप,कभी लगता है सुलझा।
सुलझे जब तक बात,लगे यह उतना उलझा।
कहती सरला आज,बना मानव क्यों दानव।
उलझी सी है बात,समझ कब पाया मानव।।
13-आँगन
तेरे आंगन की कली, मैया मैं हूं आज,
करना मत तुम दूर यूं,दिल में रखना साज।
दिल में रखना साज,कभी जब बड़ी बनूंगी।
तेरा ऊंचा नाम , सदा मैं मात करूंगी।
सरला कहती आज,साथ चलना बस मेरे।
दुनिया की क्या बात, चांद सूरज भी तेरे।।
14-आधा
रोती क्यों जगमें वही,आधा जो संसार।
उसके बिन संभव नहीं,चले सृष्टि व्यापार।
चले सृष्टि व्यापार, कहां नारी बिन धरती।
करते कुछ अपमान,कहीं जीवित ही मरती।
सरला कहती आज, यही क्यों हैं दुख ढोती।
नारी जग आधार, वही सदियों से रोती।।
15-यात्रा
जीवन यात्रा है विकट,चलो पैर संभाल।
देखो पथ केवल सुपथ,रखना उन्नत भाल।
रखना उन्नत भाल,सदा परहित रत रहना।
कंटक पथ के साथ, सदा नदियों-सा बहना।
कहती सरला बात, धरो धीरज संजीवन।
मंजिल हो आसान, बने अति सुन्दर जीवन।।
16-कोना
कोना ही देदो मुझे,अपने चरणों में मात,
जीवन होगा सफल ये,जाने सब ये बात।
जाने सब ये बात , करें सब विनती तेरी।
माता रख दो हाथ,आज तुम सिरपर मेरी।
सरला कहती बात,उसे कब पड़ता रोना।
जाने सब हैं मिले , जिसे चरणों में कोना।।
17-मेला
सारा जग मेला सदृश, दिवस लिए दिन चार।
माया का सब खेल है, मतकर दिन बेकार।
मतकर दिन बेकार, जरा कर कर्म कमाई।
बांटो खुशियां आज,करो तुम जगत भलाई।
कहती सरला आज, बना ले जीवन न्यारा।
माया बंधन काट, करो सुखमय जग सारा।।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली