कुछ कही सी
कुछ कही सी कुछ अनकही
मीठी मधुर जिसकी वाणी
कुछ ख्वाब नया कुछ बात पुरानी
ख्याल एक, पाने की आस जगी
कुछ हुए साकार सपने
तो दब गया कुछ जज़्बात के मलबे
है कुछ किस्सा पुरानी , धूल से लिपटी
कुछ जल गये, कुछ रह गये आंसुओं में सिमटी
कहकर भी कुछ कह न सके
रहकर भी चुप न रह सके
बस था एक ख्याल अधूरी
साथ रखकर भी कुछ रख न सके
कुछ कही सी कुछ अनकही
मीठी मधुर जिसकी वाणी