कुछ कहा मत करो
अब ग़मे हिज़्र में तुम जला मत करो
बेवफा से कभी कुछ कहा मत करो
जब खबर है ज़ुदायी वफ़ा में लिखी
इश्क़ करने की हरगिज़ ख़ता मत करो
और भी हैं यहाँ राह में मंजिलें
ताक में सिर्फ उसकी रहा मत करो
जो हमेशा ही दिल को रुला देते हैं
उन खतों को कभी भी पढ़ा मत करो
गम उतर आएगा झील- सी आँख में
गीत गम के भी यारो सुना मत करो
ये ‘सुधा’ रात–दिन अश्क टपका के यूँ
अपने हाथों ही अपनी कज़ा मत करो
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
3/1/2023