कुछ कहमुकरियाँ…
कहमुकरी एक बहुत ही पुरानी और लुप्तप्राय काव्य विधा है । अमीर खुसरो द्वारा विकसित इस विधा पर भारतेंदु जी ने भी स्तरीय काव्य सृजन किया है । यह अत्यंत लालित्य पूर्ण और चुलबुली लोकविधा है। इसमें दो सखियों के बीच का संवाद निहित होता है । एक सखी अपने प्रिय को याद करते हुए कुछ कहती है तो दूसरी सखि पूछती है कि क्या वह अपने साजन की बात कर रही है तब उसके इस तरह पूछने पर पहली सखि बडी चालाकी से इनकार कर किसी अन्य सामान्य सी चीज की तरफ इशारा कर देती है । इस प्रकार पहली तीन पंक्तियों में स्वीकृति और आखिरी बंध में मुकर जाने के कारण ही इसे कहमुकरी कहा जाता है ।
गुप्त बात प्रकट होने की आशंका से चतुराई पूर्वक मिथ्या समाधान से निषेध कर उसे छिपाया जाता है ।
१-
हर मुश्किल में साथ निभाए
बिगड़े सारे काम बनाए
रहता दिल में आठों याम
क्या सखि साजन ! ना सखि राम।
२-
आगे पीछे मेरे डोले
कान में कोई मंतर बोले
समझ न आए एक भी अच्छर
क्या सखि साजन! ना सखि मच्छर ।
३-
वो पास है तो जीने का सुख है
उस बिन तो बस दुख ही दुख है
समझो उसे न ऐसा-वैसा
क्या सखि साजन! ना सखि पैसा ।
४-
जहाँ भी जाऊँ संग ले जाऊँ
उस बिन पलभर रह न पाऊँ
मुझे भाए उसका हर स्टाइल
क्या सखि साजन! ना मोबाइल ।
५-
हर बुराई से रोके मुझको
गलती करूँ तो टोके मुझको
सिखाए मुझे जीवन का सार
क्या सखि साजन! ना सदाचार।
६- तन मन का वह ताप मिटाए
उस बिन अब तो रहा न जाए
छुपा है जाने कहाँ मनभावन
क्या सखि साजन ! ना सखि सावन ।
-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)