कुछ कहना नही
हमें तुम से कभी कुछ कहना नहीं
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हमें तुम से कभी कुछ कहना नहीं,
ज़ुल्म अब और बस सहना नहीं।
नैनों से झडा आ कर नीर मैं,
अश्क बनकर कभी भी बहना नहीं।
मिला कुछ भी नहीं तेरी रहगुजर,
गुलामी में हमें पर रहना नहीं।
झुका कदमो में तेरी चौखट यहाँ,
बना तेरे गले का गहना नहीं।
जला कर तन-बदन देखा है बहुत,
जिस्म को ओर लू में दहना नही।
बड़ी मुश्किल से मनसीरत है बना,
खड़ा कर खुद मकां को ढहना नही।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)