हम कुछ कहना चाहते पर कह नहीं पाते,
*हम कुछ कहना चाहते है,
पर खुद से कुछ कह नहीं पाते,
किसी की आड़ में कहते है,
.
जिन्हें हम आप्त वचन कहते है,
किसी के वचन,किसी की तस्वीर,
अपने से ज्यादा हम उन पर लड़ते है,
.
वक्त बहुत जालिम है,
उसकि नजाकत को नहीं समझते,
इसलिए चुप है,पर दुनिया में,
चुप्पी की कीमत बहुत नहीं दिखती,
हर किसी को रास नहीं आती,
लोग उसका भी अर्थ निकाल लेते है,
शायद उसका भी वक्त होता है,
उसकी भी हमेशा कीमत नहीं होती,
हम कुछ कहना चाहते है,
पर कह नहीं पाते ,
नफरत का बीज है ये,
बाद में पछतावा करते है,
बहुत देर है ये,
हर बार यही दोहराया जाता है,
इसलिए कभी भी जीत नहीं होती,
हार ही हाथ लगती है,
Mahender Singh Author at