” कुछ करो कि रस्ता छोटा हो “
” कुछ करो कि रस्ता छोटा हो ”
नहीं मिली गर शीतल छाया, हम सड़कों पर जल लेंगे
नहीं मिली गर उड़न तश्तरी, हम पैदल ही चल लेंगे
पैदल में है हर्ज क्या जो, नित कदम कदम पिरोता हो
हे लहरों के राजहंस, कुछ करो कि रस्ता छोटा हो
चाल अक्ल से पैदल हम, भूख प्यास सब भूल गए
क्षितिज पास और दूर है आंगन, पटरी पर झूले झूल गए
हर सिक्का कीमत रखता है, चाहे वह कितना खोटा हो
हे सोनचिड़ी के स्वर्णकार, कुछ करो कि रस्ता छोटा हो
छेद न हो भेद न हो, देश नाव नाविक सब हैं
माना कि सृष्टि रचयिता तुम, छोटे मोटे हम भी रब हैं
सबके मन की बात करो, बड़ा हो या फिर छोटा हो
हे सिंहासन के शेर मेरे, कुछ करो कि रस्ता छोटा हो
तुम रस्ता हो अवरोध नहीं, है तुमसे कोई विरोध नहीं
सड़कों से छिल पद चिप्स बनें, मालिक यह कोई विनोद नहीं
हे सूर्य किरण दो कोने तक, जहां गुम होकर कोई रोता हो
हे मेरे जख्मों के मरहम, कुछ करो कि रस्ता छोटा हो
कुछ करो कि रस्ता छोटा हो।
शंकर जीत सिंह ‘ राजन ‘
( 13/05/2020 )