कुछ आर हुये हैं कुछ पार हुये हैं……………………..
कुछ आर हुये हैं कुछ पार हुये हैं
दुनियां में दुश्मन कुछ यार हुये हैं
दौर-ए-आज में चुप ना बैठो हरगिज़
सहने पर ही अत्याचार हुये हैं
है वक़्त वक़्त की बात यहां रिश्ते
फूल कभी और कभी खार हुये हैं
उदासियां गहरा गई हैं और जबसे
सामां-ए-मनोरंजन बेशुमार हुये हैं
ना पूछे मिलके हाल-ए-दिल कोई
दोस्त फेस बुकिये हज़ार हुये हैं
कब खुशियाँ सिखा पाई सबक़ किसी को
गम की आंच से समझदार हुये हैं
गरचे नहीं कहा ज़ुबान से कुछ भी
नज़रों से वार लगातार हुये हैं
—–सुरेश सांगवान’सरु’