कुछ अपनी कही जाए कुछ उनकी सुनी जाए
——-ग़ज़ल——
नादार के होठों पर कुछ पल को हँसी जाए
कुछ ऐसा करें उनकी आँखों से नमी जाए
हर फ़र्क़ मिटा कर के नज़दीक बिठा उनको
कुछ अपनी कही जाए कुछ उनकी सुनी जाए
आ जाओ करें मिलकर हम सब ये दुआ यारों
दुनिया में जो फैली है बीमारी चली जाए
अब ऐसा खुले मकतब इस देश में ऐ यारों
उल्फ़त की सबक़ जिसमें दिन रात पढ़ी जाए
बे-परदा न होने दो तुम ख़ुद को सरे-महफ़िल
बिजली सी मेरे दिल पे ऐसे में गिरी जाए
मुस्तैद रहो हर पल यूँ ख़ुद पे नज़र रखना
रब जाने हमें लेकर कब कौन घड़ी जाए
उस पार लगा देना या रब तू हरिक कश्ती
मझधार में जीवन के जो आज बही जाए
आ जाओ करें मिलकर हम सब ये दुआ ”प्रीतम”
दुनिया में जो फैली है बीमारी चली जाए
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)