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6 Oct 2017 · 1 min read

कुछ अजीब से रिश्ते

ललित छंद??
कुछ अजीब सी ये दुनिया है,कुछ अजीब से रिश्ते।
कुछ बन जाते दोस्त यहां पर,तो कुछ बने फरिश्ते।।
कोई याद जख्म के जैसे,कोई मरहम जैसे।
कोई अंतर में बस जाता,लगता हमदम जैसे।।

कोई दिल में फूल खिलाते,कोई कंटक बोते।
कहीं-कहीं खुद को पाते हैं ,कहीं खुदी को खोते।।
कुछ रिश्ते दिल से जुड़ जाते,कुछ मतलब के होते।
कुछ इज्जत से जुड़े हुये नित,मर्यादा को ढ़ोते।।

कुछ लम्बे दूरी तक चलते,कुछ पल में ही टूटे।
कुछ ऐसे भी रिश्ते होते, छोड़ने से न छूटे।।
कुछ सुलझे अनसुलझे होते,रिश्तों के ये धागे।
निभे अगर तो चल जाते हैं,सात जनम के आगे।।

कहीं सूत कच्चे धागे के,
प्रेम- प्यार से सींचे।
कहीं खून से जुड़े हुए निज, संबंधो को खींचें।।
कहीं दर्द का रिश्ता होता,कहीं खुशी के नाते।
कितनए ही यादें दे जाते,रिश्ते आते जाते ।।

कई रंग में रँगे हुए जब,आगंतुक घर आते
हर्ष की शुभकामनाओ से,जो मन को हुलसाते।।
जो सदा ही मधुर बंधन में,सबको बाँधे रखते।
बन जाता मधुबन जीवन ये,मधुर रसों को चखते।।

विश्वास डाल पर रिश्तों की,उमर फूलती फलती।
टूट गयें शक के घेरे में,सदा आत्मा खलती।।
हर रिश्ता है एक ज्योति-सी, जीवन पथ पर जलती।
सभी एक माला के मोती,इनसे दुनिया चलती।।
-लक्ष्मी सिंह

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